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एक बार स्वामी विवेकानंद किसी काम से एक जगह पर जा रहे थे लेकिन इस दौरान उनके रास्ते में एक बड़ी नदी पड़ गयी जिसे देखने के बाद स्वामी विवेकानंद वहीं पर रुक गए। दरअसल नदी इतनी बड़ी थी कि उसे पार करना किसी भी इंसान के लिए नामुमकिन था ऐसे में स्वामी विवेकानंद वहीं रुके रहे। दरअसल स्वामी विवेकानंद को जिस नाव से नदी को पार करना था वो नाव दूसरे किनारे पर मौजूद थी ऐसे में जब तक वो आ नहीं जाती तब तक विवेकानंद को वहीं पर रुकना पड़ता। तभी अचानक वहां पर एक बड़े महात्मा आ गए और उन्होंने चौंकाने वाला काम किया।

जब विवेकानंद नदी के किनारे पर खड़े होकर नाव का इंतज़ार कर रहे थे तभी वहां से एक महात्मा गुज़रे और उन्होंने विवेकानंद से कहा कि आखिर तुम यहां पर रुक क्यों गए तब विवेकानंद ने उन्हें पूरी बात बताई और ऐसे में महात्मा ने विवेकानंद से कहा कि तुम इतनी छोटी रुकावट से डर गए और यहीं रुक गए ऐसे में तुम बड़ी रुकावटों का सामना कैसे करोगे, इसके फ़ौरन बाद महात्मा उस नदी के ऊपर चलने लगे और नदी के बीचों-बीच जाकर वापस किनारे पर लौट आए। यह सब देखकर स्वामी विवेकानंद महात्मा से पूछा कि गुरुदेव आपने ये कैसे किया तो महात्मा ने बोला कि इस तरह पानी पर चलना आसान नहीं है, इसके लिए मैंने हिमालय पर 30 सालों तक कड़ी तपस्या की है। यह सुनकर विवेकानंद बोले कि महाराज आपने इस दो पैसे के काम के लिए अपने जीवन के 30 बहुमूल्य साल गुज़ार दिए, काश आपने ये 30 साल समाज कल्याण में लगाए होते तो दुनिया का कुछ भला हो जाता। विवेकानंद की यह बात सुनकर महात्मा के होश उड़ गए थे और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हुआ।

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