प्रारंभनमस्ते स्वयंसेवक मित्रों,
आज मैं मकर संक्रांति के विषय में कुछ विचार साझा करना चाहूँगा। मकर संक्रांति हमारे भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार परिवर्तन, सकारात्मकता, और ऊर्जा के नवीकरण का संदेश देता है।मकर संक्रांति का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्वऋतु परिवर्तन का पर्व:मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर, आलस्य से कर्म की ओर और ठहराव से गतिशीलता की ओर बढ़ने का प्रतीक है।इसे शुभ समय का आरंभ भी कहा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण को विशेष महत्त्व दिया है।एकता और विविधता का पर्व:यह पर्व पूरे भारत में विभिन्न नामों और रूपों में मनाया जाता है:पोंगल (तमिलनाडु)लोहड़ी (पंजाब)उत्तरायण (गुजरात)संक्रांत (महाराष्ट्र)खिचड़ी (उत्तर प्रदेश और बिहार)ये सभी त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।दान और सेवा का संदेश:मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। यह त्याग, सेवा और समर्पण का पर्व है, जो हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बोध कराता है।मकर संक्रांति और स्वयंसेवक जीवनकर्म का प्रतीक:सूर्य की यात्रा हमें निरंतरता और कर्मठता का संदेश देती है। स्वयंसेवक के जीवन में कर्म का विशेष महत्व है।मकर संक्रांति हमें सिखाती है कि जैसे सूर्य बिना रुके अपनी दिशा बदलता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सतत कर्म करते रहना चाहिए।समाज निर्माण का संदेश:यह पर्व हमें एकजुट होकर समाज के विकास के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।शाखा में भी हमें समर्पण, अनुशासन और संगठित प्रयासों के माध्यम से समाज को मजबूत बनाना है।आधुनिक संदर्भ में मकर संक्रांतिपर्यावरण का ध्यान रखें:पतंग उड़ाने के दौरान पक्षियों का ध्यान रखें और इको-फ्रेंडली धागों का प्रयोग करें।जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें।संस्कारों का प्रसार करें:घर-घर में इस पर्व के महत्व को समझाएं और नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति से जोड़ें।समापनमकर संक्रांति हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, कर्मशील बने रहने और समाजहित में कार्य करने की प्रेरणा देती है। आइए, हम सब मिलकर इस पर्व का महत्व समझें और इसे अपनी दैनिक दिनचर्या में उतारें।तिल गुड़ घ्या, और गोड़ गोड़ बोला।
धन्यवाद!
वंदे मातरम्।