परम पवित्र भगवा ध्वज एवं स्वयं सेवक बंधुओं !!!
गुरु पूर्णिमा संघ के छः उत्सवों में से एक हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हजारों साल से जगत गुरु व्यास से लेकर भारत में गुरु शिष्य परम्परा चलती आयी हैं। गुरु के माध्यम से हम संस्कार पाते हैं। गुरु के माध्यम से हम बल पाते हैं। यही कारण है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में यह महत्वपूर्ण उत्सव है।गुरु शिष्य परम्परा भारत में बहुत पुरानी है , जैसे श्रीराम के गुरु वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र थे।श्रीकृष्ण ने उज्जैन में सांदीपनि ऋषि से ज्ञान हासिल किया था।भगवान परशुराम कर्ण और द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु थे। समर्थ रामदास जी छत्रपति शिवजी के गुरु थे। ऐसे अनेकों उद्धरणों से भारत का इतिहास भरा हुआ है। भारत के वेदों, धार्मिक पुस्तकों में गुरु की महत्वता को दर्शाया गया है। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरःगुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमःडॉक्टर साहब बहुत दूर दृष्टि रखते थे। उन्हें पता था मनुष्य में दोष हो सकता है। उसका मन दूषित हो सकता हैं। और गुर सदैव प्रेरणा दायक रहना चाहिए। इसलिए उन्होंने तत्व को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुरु के रूप में स्थापित करने की सोच रखीं।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज को गुरु माना गया है। हिन्दू संस्कृति हमारे देश की जीवन रेखा है और भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति का प्रतीक है। हमने अनेक मठ, मंदिरों, घरों में भगवा ध्वज को लहरते हुए देखा हैं। निश्चित यह हमारे मन और मस्तिष्क को ऊर्जा से भर देता हैं। इसके अतिरिक्त भगवा रंग को युगों से साधु संत धारण करते हैं। वैदिक यज्ञ की आग से निकले वाली आग का रंग भी भगवा होता हैं। प्रकति में भी सुबह और शाम को सूर्य की किरणों के साथ भगवा रंग बिखर जाता है। भगवा ध्वज को भारतीय हिन्दू शासकों ने युद्ध में विदेशी आक्रांताओं से लड़ने में प्रयोग किया। फिर वो चाहे हो महाराणा प्रताप हो या फिर छत्रपति शिवजी या फिर रानी लक्ष्मी बाई। सिखों के दसवें गुरु ने भी भगवा ध्वज को प्रयोग किया। गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।