;
संघ ह्रदय में भर पाए अब
घर-घर हमको जाना है
घर-घर हमको जाना है॥ध्रु०॥

संघ कार्य जीवन व्रत मेरा कभी न यह बिसराना है।
अहंकार व्यक्तितत्व ह्रदय से पूर्ण मिटाकर चलना है।
तत्व ज्ञान की शिक्षा पाकर स्वर्णिम समय बिताना है।
तत्व सुधारस पीकर निज को अमृत पूर्ण बनाना है॥१॥

हिन्दु एक अपनत्व भावना रोम रोम में भरना है।
हिन्दु ह्रदय सब एक रुप कर बिन्दु सिन्धुवत करना है।
ह्रत्सीमा के बाहर अपने संघ शक्ति प्रकटाना है।
कार्य कुशलता से अपना आगे पैर बढ़ाना है॥२

सिध्दांतो पर अपने डटकर संघ नींव को भरना है।
निर्भय होकर दृढ़ता से अब विपत्तियों से लड़ना है।
अन्तरंग बहिरंग हमारा एक समान सुनिर्मल है
राष्ट्रीयता का अनुभव निज कार्यरुप में लाना है॥३॥

संघ शक्ति के प्रकर्ष में ही हिन्दु ह्रदय उत्कर्ष भरा।
संघ शक्ति के प्रकर्ष में ही रिपु दल का है नाश भरा।
राष्ट्र भक्ति की प्रदीप्त ज्वाला धधक रही मन मन्दिर में
जल से जल सायुज्य मुक्ति का तेज भरे प्रभु भारत में॥५॥

और भी पढ़ें:-