हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हमन सोचा कभी देश क्या धर्म क्या हैन जाना कभी पा मनुज-तन जगत मेंहमारे लिये श्रेष्ठतम कर्म क्या हैदिया ज्ञान जबसे मगर आपने हैनिरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् थासुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता थासभी सुप्त थे घोर तम में अकेलाह्रदय आपका हे तपी जूझता थाजलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमगहमें प्रेरणा की डगर मिल गई ॥हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में हीयुगों से सदा घोर अपमान पायाद्रवित हो गये आप यह दृश्य देखानहीं एक पल को कभी चैन पायाह्रदय की व्यथा संघ बनकर फुट निकलीहमें संगठन की डगर मिल गई है॥हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू कोयही आपने शब्द मुख से कहे थेपुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग मेंसंजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थेजला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिरहमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥