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है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा
है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा
रूद्र हूँ विष छोड़ मधु की कामना मैं क्यों करूँगा

इन्द्र को निज अस्थि पन्जर जबकि मैंने दे दिया था
घोर विष का पात्र उस दिन एक क्षण में ले लिया था
दे चुका जब प्राण कितनी बार जग का त्राण करने
फिर भला विध्वंस की कटु कल्पना मैं क्यों करूँगा
 
है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

फूँक दी निज देह भी जब, विश्व का कल्याण करने
झौंक डाला आज भी सर्वस्व युग निर्माण करने
जगमगा दी झोंपड़ी के दीप से अट्टालिकाएँ
फिर वही दीपक, तिमिर की साधना मैं क्यों करूँगा

है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

 विश्व के पीड़ित मनुज को जब खुला है द्वार मेरा
दूध साँपों को पिलाता स्नेहमय आगार मेरा
जीत कर भी शत्रु को जब मैं दया का दान देता
देश में ही द्वेष की फिर भावना मैं क्यों भरूँगा

है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

मार दी ठोकर विभव को बन गया क्षण में भिखारी
किन्तु फिर भी जल रही क्यों द्वेष से आँखें तुम्हारी
आज मानव के हृदय पर राज्य जब मैं कर रहा हूँ
फिर क्षणिक साम्राज्य की भी कामना मैं क्यों करूँगा

है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा
रूद्र हूँ विष छोड़ मधु की कामना मैं क्यों करूँगा 

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